Kaise Bayan Karu Alfaz Nahi HaiKaise bayan karu alfaz nahi haiMere dard ka tuje ehsas nahi haiPuchte hain sub tumhe kya dard haiDard ye hai ki ab wo mere pass nahi hai
Nothing to sayNothing to sayNothing to writeNothing to sendBut i believe thatYou will listenRead & receivMy feelings in the silence too.
चंद कुछ लब्ज़ बहुत देखा जीवन में समझदार बन कर पर ख़ुशी हमेशा पागलपन से हीचंद कुछ लब्बहुत देखा जीवन में समझदार बन कर पर ख़ुशी हमेशा पागलपन से ही मिली है ।। इसे इत्तेफाक समझो या दर्द भरी हकीकत,आँख जब भी नम हुई, वजह कोई अपना ही था “हमने अपने नसीब से ज्यादा अपने दोस्तो पर भरोसा रखा है. क्यूँ की नसीब तो बहुत बार बदला है”.लेकिन मेरे दोस्त अभी भी वही है”.उम्रकैद की तरह होते हैं कुछ रिश्ते, जहाँ जमानत देकर भी रिहाई मुमकिन नहीं दर्द को दर्द से न देखो, दर्द को भी दर्द होता है, दर्द को ज़रूरत है दोस्त की,आखिर दोस्त ही दर्द में हमदर्द होता हैज़ख़्म दे कर ना पूछा करो, दर्द की शिद्दत…!“दर्द तो दर्द” होता हैं, थोड़ा क्या, ज्यादा क्या…!!“दिन बीत जाते हैं सुहानी यादें बनकर,बातें रह जाती हैं कहानी बनकर,पर दोस्त तो हमेशा दिल के करीब रहेंगे,कभी मुस्कान तो कभी आखों का पानी बन कर. वक़्त बहुत कुछ, छीन लेता है खैर मेरी तो सिर्फ़ मुस्कुराहट थी ….!! क्या खूब लिखा है :“कमा के इतनी दौलत भी मैं अपनी “माँ” को दे ना पाया,.:::::के जितने सिक्कों से “माँ” मेरी नज़र उतारा करती थी…” गलती कबूल करने और गुनाह छोड़ने में कभी देर ना करें……!क्योकिं सफर जितना लम्बा होगा वापसी उतनी मुश्किल हो जायेगी…!! इंसान बिकता है …कितना महँगा या सस्ता ये उसकी मजबूरी तय करती है…!“शब्द दिल से निकलते है दिमाग से तो मतलब निकलते है.”.. सब कुछ हासिल नहीं होता ज़िन्दगी में यहाँ…. .किसी का “काश” तो किसी का “अगर” छूट ही जाता है…!!!!दो अक्षर की “मौत” और तीन अक्षर के “जीवन” में ….ढाई अक्षर का “दोस्त” बा
Zakhm dene ka andaz kuch aisa haiZakhm dene ka andaz kuch aisa hai.zakhm dekar puchte hai ab haKaisHai.kisi ek se gila kya karna yaro,sari dunia ka mizaz ek jaisa hai.
मिजाज़ ए इश्क़ होम्योपैथिक है उनकामिजाज़ ए इश्क़ होम्योपैथिक है उनकाना सुइयाँ, ना बोतल, ना एक्सरे, ना दाखिलाहम दर्द बयाँ करते रहे और वो मीठी गोलियाँ देते रहे
ज़हर देता है कोई: ज़हर देता है कोई ज़हर देता है कोईज़हर देता है कोई, कोई दवा देता हैजो भी मिलता है, मेरा दर्द बढ़ा देता हैकिसी हमदम का, सरे शाम ख़याल आ जानानींद जलती हुई आँखों की उड़ा देता हैप्यास इतनी है मेरी, रूह की गहराई मेंअश्क गिरता है तो, दामन को जला देता हैकिसने माज़ी के दरीचों से, पुकारा है मुझेकौन भूली हुई राहों से, सदा देता हैवक़्त ही दर्द के, काँटों पे सुलाए दिल कोवक़्त ही दर्द का, एहसास मिटा देता हैरोने से तसल्ली कभी हो जाती थीअब तबस्सुम मेरे होटों को जला देता है